अरावली पर्वतमाला भारत की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है। यह केवल पहाड़ों का समूह नहीं, बल्कि राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और गुजरात के पर्यावरण का आधार स्तंभ है। लेकिन आज यही अरावली पर्वतमाला खनन के कारण गहरे संकट में है। लगभग 50 हजार वर्ग किलोमीटर में फैली अरावली रोजाना हजारों खानों से छलनी हो रही है। संरक्षण के नाम पर केवल बयानबाजी हो रही है, जबकि हकीकत में सरकारें राजस्व को प्राथमिकता देती दिख रही हैं।
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| Save Aravali |
अरावली पर्वतमाला का महत्व
अरावली पर्वतमाला का महत्व केवल भौगोलिक नहीं है, बल्कि इसका पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक महत्व भी अत्यंत व्यापक है। यह पर्वतमाला राजस्थान के मरुस्थलीकरण को रोकने में अहम भूमिका निभाती है। साथ ही, यह भूजल recharge, जैव विविधता संरक्षण और जलवायु संतुलन के लिए भी जरूरी है। अरावली नष्ट होने का मतलब है आने वाली पीढ़ियों के लिए गंभीर संकट।
राजस्थान में अरावली का दायरा
राजस्थान में अरावली क्षेत्र लगभग 1.13 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इसमें से करीब 50 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पहाड़ी भाग के रूप में दर्ज है। विभागीय सूत्रों के अनुसार प्रदेश के 20 जिलों में अरावली पहाड़ियां मौजूद हैं। इनमें से 8 से 10 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र ऐसा है, जहां अरावली की ऊंचाई 100 मीटर या उससे अधिक है। वास्तविक आंकड़े केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा एमपीएसएम (MPSM) तैयार होने के बाद ही स्पष्ट होंगे।
10,000 से अधिक सक्रिय खानें बना रहीं अरावली को छलनी
आज अरावली क्षेत्र में लगभग 10,000 सक्रिय खानें संचालित हो रही हैं। ये खानें करीब 900 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई हैं। खनन के कारण पहाड़ों की संरचना कमजोर हो चुकी है, जंगल खत्म हो रहे हैं और जल स्रोत सूखते जा रहे हैं। यह स्थिति केवल पर्यावरण के लिए ही नहीं, बल्कि स्थानीय लोगों के जीवन के लिए भी खतरनाक है।
सभी खानों का गणित
- 20 जिलों में 11,000 से अधिक खानें आवंटित
- 10,000 खानें 100 मीटर से कम ऊंचाई पर
- 1,008 खानें 100 मीटर से अधिक ऊंचाई पर
- 747 खानें संचालित (100 मीटर से अधिक)
- 261 खानें नवीनीकरण प्रक्रिया में
- लगभग 9,500 खानें 100 मीटर से नीचे संचालित
- करीब 900 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में खनन
30 वर्षों से सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामला
अरावली में खनन को लेकर वर्ष 1995 से सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित है। बीते 30 वर्षों में कई बार अदालत ने हस्तक्षेप किया, लेकिन जमीनी स्तर पर हालात ज्यादा नहीं बदले। कोर्ट के आदेशों के बावजूद अवैध खनन जारी रहा और अरावली का क्षरण बढ़ता गया।
सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख आदेश और घटनाक्रम
- 30 अक्टूबर 2002: हरियाणा के आलमपुर और कोटे गांव में अवैध खनन पर रोक
- 9 दिसंबर 2002: राजस्थान में अरावली हिल्स क्षेत्र की सभी खानें बंद
- 16 दिसंबर 2002: संशोधित आदेश, वैध खानों को अनुमति और अवैध पर सख्ती
- 8 अप्रैल 2005: 100 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों को अरावली घोषित
- 20 नवंबर 2025: अरावली हिल्स मामले में सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला
नई खानों पर रोक से कुछ हद तक राहत
पिछले 20 वर्षों से अधिक समय से नई खानों के आवंटन पर रोक लगी हुई है। यदि यह रोक नहीं लगाई जाती, तो अरावली का बड़ा हिस्सा अब तक पूरी तरह नष्ट हो चुका होता। जो खानें आज संचालित हैं, वे दशकों पहले आवंटित की गई थीं।
3,000 नई खानें संचालन के इंतजार में
खान विभाग के अनुसार हाल के वर्षों में अरावली क्षेत्र में 3,000 से अधिक नई खानें आवंटित की गई हैं। न्यायालय की रोक के कारण ये अभी शुरू नहीं हो पाईं। हालिया फैसले के बाद इनके संचालन का रास्ता खुल सकता है, लेकिन यह एमपीएसएम तैयार होने के बाद ही संभव होगा।
राजस्व बनाम संरक्षण
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या सरकारें सच में अरावली का संरक्षण चाहती हैं? अब तक के फैसलों और नीतियों से यही लगता है कि संरक्षण से ज्यादा राजस्व को महत्व दिया गया है। खनन से मिलने वाला तात्कालिक लाभ लंबे समय के पर्यावरणीय नुकसान की तुलना में कहीं छोटा है।
अरावली को बचाने के लिए जरूरी कदम
- अवैध खनन पर सख्त और स्थायी रोक
- सभी खानों का पारदर्शी पर्यावरणीय ऑडिट
- स्थानीय समुदाय की भागीदारी
- वन क्षेत्र का पुनर्विकास और पौधारोपण
- सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का सख्ती से पालन
Save Aravalli केवल एक नारा नहीं, बल्कि समय की सबसे बड़ी जरूरत है। यदि अभी भी ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में अरावली केवल इतिहास की किताबों में ही रह जाएगी। सरकार, न्यायपालिका और समाज को मिलकर इस अमूल्य धरोहर को बचाना होगा।

