Headlines Today

FEATURED POST
News Image

झुंझुनूं में वक्फ संपत्तियों से हटेंगे 339 अवैध कब्जे

हाईकोर्ट के आदेश पर तीन हफ्ते में चलेगा बुलडोजर

झुंझुनूं (राजस्थान):
राजस्थान हाईकोर्ट के सख्त निर्देशों के बाद झुंझुनूं जिले में वक्फ बोर्ड की संपत्तियों पर हुए 339 अवैध अतिक्रमणों को हटाने की तैयारी शुरू हो गई है। कोर्ट ने प्रशासन को तीन सप्ताह के भीतर कार्रवाई पूरी कर रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है।

यह मामला हजरत कमरुद्दीन शाह दरगाह से जुड़ी वक्फ भूमि का है, जहां लंबे समय से अवैध कब्जे की शिकायतें सामने आ रही थीं। जांच में सामने आया कि कब्जाधारियों के पास किसी भी प्रकार के वैध दस्तावेज मौजूद नहीं हैं

हाईकोर्ट के आदेश के बाद जिला प्रशासन और वक्फ बोर्ड हरकत में आ गया है। जल्द ही बुलडोजर कार्रवाई के जरिए अतिक्रमण हटाया जाएगा। प्रशासन का कहना है कि कार्रवाई कानून के दायरे में और पारदर्शी तरीके से की जाएगी।

यह फैसला वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा और अवैध कब्जों पर रोक लगाने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है।

Save Aravali : 10,000 सक्रिय खानों से रोज छलनी हो रही अरावली

दिसंबर 26, 2025 | By

अरावली पर्वतमाला भारत की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है। यह केवल पहाड़ों का समूह नहीं, बल्कि राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और गुजरात के पर्यावरण का आधार स्तंभ है। लेकिन आज यही अरावली पर्वतमाला खनन के कारण गहरे संकट में है। लगभग 50 हजार वर्ग किलोमीटर में फैली अरावली रोजाना हजारों खानों से छलनी हो रही है। संरक्षण के नाम पर केवल बयानबाजी हो रही है, जबकि हकीकत में सरकारें राजस्व को प्राथमिकता देती दिख रही हैं।


save aravli
Save Aravali

अरावली पर्वतमाला का महत्व

अरावली पर्वतमाला का महत्व केवल भौगोलिक नहीं है, बल्कि इसका पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक महत्व भी अत्यंत व्यापक है। यह पर्वतमाला राजस्थान के मरुस्थलीकरण को रोकने में अहम भूमिका निभाती है। साथ ही, यह भूजल recharge, जैव विविधता संरक्षण और जलवायु संतुलन के लिए भी जरूरी है। अरावली नष्ट होने का मतलब है आने वाली पीढ़ियों के लिए गंभीर संकट।

राजस्थान में अरावली का दायरा

राजस्थान में अरावली क्षेत्र लगभग 1.13 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इसमें से करीब 50 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पहाड़ी भाग के रूप में दर्ज है। विभागीय सूत्रों के अनुसार प्रदेश के 20 जिलों में अरावली पहाड़ियां मौजूद हैं। इनमें से 8 से 10 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र ऐसा है, जहां अरावली की ऊंचाई 100 मीटर या उससे अधिक है। वास्तविक आंकड़े केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा एमपीएसएम (MPSM) तैयार होने के बाद ही स्पष्ट होंगे।

10,000 से अधिक सक्रिय खानें बना रहीं अरावली को छलनी

आज अरावली क्षेत्र में लगभग 10,000 सक्रिय खानें संचालित हो रही हैं। ये खानें करीब 900 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई हैं। खनन के कारण पहाड़ों की संरचना कमजोर हो चुकी है, जंगल खत्म हो रहे हैं और जल स्रोत सूखते जा रहे हैं। यह स्थिति केवल पर्यावरण के लिए ही नहीं, बल्कि स्थानीय लोगों के जीवन के लिए भी खतरनाक है।

सभी खानों का गणित

  • 20 जिलों में 11,000 से अधिक खानें आवंटित
  • 10,000 खानें 100 मीटर से कम ऊंचाई पर
  • 1,008 खानें 100 मीटर से अधिक ऊंचाई पर
  • 747 खानें संचालित (100 मीटर से अधिक)
  • 261 खानें नवीनीकरण प्रक्रिया में
  • लगभग 9,500 खानें 100 मीटर से नीचे संचालित
  • करीब 900 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में खनन

30 वर्षों से सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामला

अरावली में खनन को लेकर वर्ष 1995 से सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित है। बीते 30 वर्षों में कई बार अदालत ने हस्तक्षेप किया, लेकिन जमीनी स्तर पर हालात ज्यादा नहीं बदले। कोर्ट के आदेशों के बावजूद अवैध खनन जारी रहा और अरावली का क्षरण बढ़ता गया।

सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख आदेश और घटनाक्रम

  • 30 अक्टूबर 2002: हरियाणा के आलमपुर और कोटे गांव में अवैध खनन पर रोक
  • 9 दिसंबर 2002: राजस्थान में अरावली हिल्स क्षेत्र की सभी खानें बंद
  • 16 दिसंबर 2002: संशोधित आदेश, वैध खानों को अनुमति और अवैध पर सख्ती
  • 8 अप्रैल 2005: 100 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों को अरावली घोषित
  • 20 नवंबर 2025: अरावली हिल्स मामले में सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला

नई खानों पर रोक से कुछ हद तक राहत

पिछले 20 वर्षों से अधिक समय से नई खानों के आवंटन पर रोक लगी हुई है। यदि यह रोक नहीं लगाई जाती, तो अरावली का बड़ा हिस्सा अब तक पूरी तरह नष्ट हो चुका होता। जो खानें आज संचालित हैं, वे दशकों पहले आवंटित की गई थीं।

3,000 नई खानें संचालन के इंतजार में

खान विभाग के अनुसार हाल के वर्षों में अरावली क्षेत्र में 3,000 से अधिक नई खानें आवंटित की गई हैं। न्यायालय की रोक के कारण ये अभी शुरू नहीं हो पाईं। हालिया फैसले के बाद इनके संचालन का रास्ता खुल सकता है, लेकिन यह एमपीएसएम तैयार होने के बाद ही संभव होगा।

राजस्व बनाम संरक्षण

सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या सरकारें सच में अरावली का संरक्षण चाहती हैं? अब तक के फैसलों और नीतियों से यही लगता है कि संरक्षण से ज्यादा राजस्व को महत्व दिया गया है। खनन से मिलने वाला तात्कालिक लाभ लंबे समय के पर्यावरणीय नुकसान की तुलना में कहीं छोटा है।

अरावली को बचाने के लिए जरूरी कदम

  • अवैध खनन पर सख्त और स्थायी रोक
  • सभी खानों का पारदर्शी पर्यावरणीय ऑडिट
  • स्थानीय समुदाय की भागीदारी
  • वन क्षेत्र का पुनर्विकास और पौधारोपण
  • सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का सख्ती से पालन

Save Aravalli केवल एक नारा नहीं, बल्कि समय की सबसे बड़ी जरूरत है। यदि अभी भी ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में अरावली केवल इतिहास की किताबों में ही रह जाएगी। सरकार, न्यायपालिका और समाज को मिलकर इस अमूल्य धरोहर को बचाना होगा।

काटली नदी अतिक्रमण कारवार्ई: बिना नोटिस उजड़े गरीब परिवार, प्रशासन पर गंभीर सवाल

दिसंबर 22, 2025 | By

झुंझुनू में प्रशासनिक कार्रवाई या राजनीतिक टारगेटिंग?

काटली नदी अतिक्रमण कारवार्ई
काटली नदी अतिक्रमण कारवार्ई

झुंझुनू जिले के उदयपुरवाटी उपखंड में काटली नदी क्षेत्र में हुई अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई ने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। बिना किसी पूर्व सूचना के प्रशासन ने गरीब किसानों और मजदूर परिवारों के मकान तोड़ दिए। इस कार्रवाई से दर्जनों परिवार बेघर हो गए और खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हो गए।

स्थानीय लोगों का आरोप है कि यह कार्रवाई न्यायसंगत नहीं बल्कि राजनीतिक भेदभाव के आधार पर की गई। एक ही नदी क्षेत्र में बसे कई घरों को छोड़ दिया गया, जबकि गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों को निशाना बनाया गया।

बिना नोटिस के कार्रवाई: क्या यही है कानून?

पीड़ित परिवारों का कहना है कि:-

  • कोई लिखित नोटिस नहीं दिया गया
  • 10 दिन पहले सूचना देने का नियम पालन नहीं हुआ
  • खड़ी फसलों पर ट्रैक्टर चला दिए गए
  • बिजली कनेक्शन काट दिए गए

जब सरकार ने पहले बिजली कनेक्शन दिए, बिल वसूले, तो फिर आज उसी जगह को अवैध बताकर उजाड़ना कितना उचित है? यही सबसे बड़ा सवाल है।

40-50 साल से बसे लोग आज बेघर

कई परिवारों का कहना है कि वे पिछले 40-50 वर्षों से इसी स्थान पर रह रहे हैं। यहां तक कि बुजुर्गों ने बताया कि उन्होंने नदी को बहते हुए कभी नहीं देखा।

एक 80 वर्षीय बुजुर्ग किसान ने कहा कि उन्होंने अपनी 60 बीघा जमीन में लाखों रुपये खर्च कर खेती की थी, लेकिन एक ही दिन में सब नष्ट हो गया।

आज की स्थिति: तंबू, ठंड और भूख

अतिक्रमण हटाने के बाद जो हालात बने हैं, वे बेहद दर्दनाक हैं:

  • परिवार तंबू में रहने को मजबूर
  • छोटे बच्चे खुले में सो रहे हैं
  • न बिजली है, न पानी
  • पशु भी भूखे और बीमार
  • पढ़ाई पूरी तरह प्रभावित

लोगों को रात में न सोने की जगह है, न खाना पकाने की सुरक्षित व्यवस्था। महिलाएं और बच्चे सबसे ज्यादा परेशान हैं।

क्या कार्रवाई सभी पर समान रूप से हुई?

स्थानीय लोगों का आरोप है कि:-

  • एक विशेष पार्टी से जुड़े लोगों की जमीन नहीं तोड़ी गई
  • कुछ प्रभावशाली लोगों की फसल और मकान सुरक्षित रहे
  • केवल गरीब और कमजोर वर्ग को टारगेट किया गया

अगर नदी अतिक्रमण है, तो फिर पूरी नदी पर समान कार्रवाई क्यों नहीं हुई? सिर्फ 400 मीटर में ही कार्रवाई क्यों सीमित रही, जबकि आगे कई किलोमीटर तक अतिक्रमण मौजूद है?

पुनर्वास और मुआवजा: प्रशासन की जिम्मेदारी

पीड़ितों की मुख्य मांगें हैं:

  • सभी प्रभावित परिवारों को पुनर्वास दिया जाए।
  • नष्ट फसलों का मुआवजा मिले
  • बच्चों की पढ़ाई और स्वास्थ्य की व्यवस्था हो
  • भविष्य में बिना नोटिस ऐसी कार्रवाई न हो

लोगों का कहना है कि अगर पहले वैकल्पिक व्यवस्था की जाती, तो यह मानवीय संकट पैदा नहीं होता।

प्रशासन और सरकार से अपील

यह सिर्फ अतिक्रमण का मामला नहीं, बल्कि मानवता और संवेदनशीलता का भी सवाल है।
सरकार और प्रशासन को चाहिए कि:-

  • निष्पक्ष जांच कराई जाए।
  • दोषियों पर कार्रवाई हो
  • पीड़ित परिवारों को तुरंत राहत मिले

गरीबों का आशियाना उजाड़ना आसान है, लेकिन उनकी जिंदगी फिर से बसाना प्रशासन की जिम्मेदारी है।

काटली नदी की यह कार्रवाई केवल जमीन हटाने तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसने कई परिवारों की जिंदगी उजाड़ दी। अब जरूरत है संवेदनशील निर्णय, न्यायपूर्ण कार्रवाई और मानवीय दृष्टिकोण की। अगर प्रशासन समय रहते नहीं जागा, तो यह मुद्दा और भी गंभीर रूप ले सकता है।

डेली की महत्वपूर्ण सूचनाओ का अपडेट 2025-26

दिसंबर 18, 2025 | By

गुना के रेलवे स्टेशन को मिला राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण पुरस्कार 2025

  • राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस पर म्याना रेलवे स्टेशन को सम्मानित किया।
  • म्याना स्टेशन ने 9687 यूनिट विद्युत ऊर्जा की बचत की।
  • म्याना रेलवे स्टेशन को बेस्ट परफॉर्मिंग यूनिट के रूप में राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण पुरस्कार मिला।
  • मियाना रेलवे स्टेशन 126 साल पुराना है।
  • यह स्टेशन गुना जिला, मध्य प्रदेश में स्थित है।
  • स्टेशन पर केवल 2 ट्रैक और 2 प्लेटफॉर्म हैं।
ध्रुव-64 (DHRUV64) – 

  • यह भारत का पहला पूरी तरह स्वदेशी माइक्रोप्रोसेसर है।
  • इसे C-DAC (Centre for Development of Advanced Computing) ने विकसित किया है।
  • यह माइक्रोप्रोसेसर डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत बनाया गया। इसकी गति लगभग 1.0 GHz है।
  • यह 64-बिट और मल्टी-कोर तकनीक पर आधारित है।
  • माइक्रोप्रोसेसर किसी भी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस का दिमाग होता है।
  • मोबाइल, कंप्यूटर, मशीनें और स्मार्ट डिवाइस इसी से संचालित होते हैं।

DHRUV64 एक साथ कई कार्य आसानी से कर सकता है।

उपयोग (Applications): -

  1. 5G
  2. IoT (Internet of Things)
  3. डिफेंस सिस्टम
  4. इंडस्ट्रियल सिस्टम


देश में  करीब 44 एक्सप्रेसवे मौजूद हैं। 

सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने मुंबई–पुणे के बीच नए एक्सप्रेसवे की योजना की घोषणा की।

मार्च 2014 तक देश में केवल 93 km एक्सप्रेसवे चालू थे। जो  बढ़कर जून 2025 तक इनकी की कुल लंबाई 2,636 km हो गई है।

भारत का सबसे लंबा एक्सप्रेसवे: - दिल्ली–मुंबई एक्सप्रेसवे (NE-4)

जिसमे कुल 8 लेन है जिनकी  कुल लंबाई 1380 किमी है ओर यह  6 राज्यों को जोड़ता है।

राज्यवार एक्सप्रेसवे की लंबाई (किमी में):

गुजरात – 310 किमी

हरियाणा – 583 किमी

एमपी (मध्य प्रदेश) – 224 किमी

राजस्थान – 964 किमी

यूपी (उत्तर प्रदेश) – 232 किमी

ऑस्कर की शॉर्टलिस्ट में भारत की फिल्म ‘होमबाउंड’


फिल्म ‘होमबाउंड’ को ऑस्कर 2026 के बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फिल्म कैटेगरी की टॉप-15 शॉर्टलिस्ट में जगह मिली।

फिल्म के निर्देशक: नीरज घायवान

यह फिल्म भारत की आधिकारिक एंट्री है।

ऑस्कर के लिए भेजी गई 86 देशों की फिल्मों में से चयन।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को  इथियोपिया का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘ग्रैंड ऑर्डर ऑफ इथियोपिया’ मिला। 

यह सम्मान पाने वाले दुनिया के पहले राष्ट्राध्यक्ष/सरकार प्रमुख।

पीएम मोदी को मिला 28वां सर्वोच्च विदेशी सम्मान।

आंध्र प्रदेश की पोडु खादी को GI टैग प्रदान किया गया।

GI टैग केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा दिया जाता है  यह हाथ से काती और बुनी गई सूती खादी है।

मजबूती और बनावट के लिए प्रसिद्ध।

ब्लूमबर्ग ‘वर्ल्ड्स 25 रिचेस्ट फैमिली’ लिस्ट मे भारत से केवल अंबानी परिवार शामिल।

कुल संपत्ति: 105.6 अरब डॉलर।

सूची में वॉलमार्ट के मालिक वॉल्टन परिवार पहले स्थान पर।


बीमा के प्रति लापरवाही: महंगी गाड़ियाँ खरीदने वाले भी बचाते हैं 100 रुपये

अगस्त 05, 2025 | By

देश में बड़ी संख्या में लोग लाखों रुपये की कार तो खरीदते हैं, लेकिन मोटर बीमा के नाम पर कंजूसी कर जाते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 50% वाहन बिना इंश्योरेंस के सड़कों पर दौड़ रहे हैं। यह न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि हादसे की स्थिति में भारी आर्थिक नुकसान का कारण भी बन सकता है। इंश्योरेंस न होने पर किसी दुर्घटना में थर्ड पार्टी को हर्जाना खुद वाहन मालिक को अपनी जेब से देना पड़ता है।

मोटर बीमा न होने पर लगेगा भारी जुर्माना

केंद्र सरकार मोटर वाहन अधिनियम में बदलाव की तैयारी कर रही है ताकि सड़क सुरक्षा को मजबूत किया जा सके। प्रस्तावित नियमों के अनुसार, बिना बीमा वाहन चलाने पर पहली बार इंश्योरेंस के बेस प्रीमियम का तीन गुना जुर्माना लगाया जाएगा। यदि वही व्यक्ति दोबारा बिना बीमा पकड़ा जाता है, तो यह जुर्माना पांच गुना तक हो सकता है। फिलहाल ऐसे मामलों में पहली बार ₹2000 और दूसरी बार ₹4000 का जुर्माना लगता है। नए नियमों को कैबिनेट की मंजूरी के बाद पूरे देश में लागू किया जाएगा।

स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी हो सकती है और महंगी

स्वास्थ्य सेवाओं की बढ़ती लागत को देखते हुए इंश्योरेंस कंपनियाँ भी पॉलिसियों की प्रीमियम दरें बढ़ाने की योजना बना रही हैं। निवा बूपा हेल्थ इंश्योरेंस वित्त वर्ष 2025-26 में अपने बीमा उत्पादों के प्रीमियम में 8 से 9 प्रतिशत तक वृद्धि कर सकती है। कंपनी के सीएफओ ने बताया कि यह वृद्धि उत्पाद चक्र और लागत पर निर्भर करेगी। स्टार हेल्थ इंश्योरेंस भी ऐसी योजना पर काम कर रही है, जिसमें ग्राहकों को छूट आधारित मूल्य मॉडल मिलेगा। इसका लाभ उन्हें मिलेगा जिनका हेल्थ रिकॉर्ड अच्छा है या जिन्होंने क्लेम नहीं किया है। वर्ष 2025 में चिकित्सा महंगाई दर 13% तक बढ़ने का अनुमान है, जिससे अन्य कंपनियाँ भी प्रीमियम दरें बढ़ा सकती हैं।

ड्राइविंग लाइसेंस के नियमों में भी होगा बदलाव

सड़क पर अनुशासन और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ड्राइविंग लाइसेंस नियमों में भी संशोधन किया जा रहा है। यदि कोई व्यक्ति तेज गति से वाहन चलाता है या शराब पीकर गाड़ी चलाने का दोषी पाया जाता है, तो लाइसेंस रिन्यूअल के समय उसे फिर से ड्राइविंग टेस्ट देना होगा। साथ ही 55 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के लिए भी रिन्यूअल प्रक्रिया में ड्राइविंग टेस्ट अनिवार्य किया जाएगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे सुरक्षित ढंग से वाहन चला सकते हैं या नहीं।

गुढ़ागौड़जी: किसान के बाड़े में घुसे जंगली जानवर ने 31 भेड़ों को बनाया शिकार, इलाके में दहशत

जुलाई 31, 2025 | By

 

किसान के बाड़े में घुसे जंगली जानवर ने 31 भेड़ों को बनाया शिकार
किसान के बाड़े में घुसे जंगली जानवर ने 31 भेड़ों को बनाया शिकार

स्थान: गुढ़ागौड़जी (झुंझुनूं) | तारीख: मंगलवार रात

बड़ी खबर: गुमाना का बास में खेत के बाड़े में मचा खूनी तांडव

गुढ़ागौड़जी उपखंड के अंतर्गत गुमाना का बास गांव में मंगलवार रात दिल दहला देने वाली घटना सामने आई। किसान राकेश महला के खेत में बने बाड़े में एक जंगली जानवर ने घुसकर 31 भेड़ों को मौत के घाट उतार दिया। घटना से इलाके में दहशत का माहौल है।

कैसे हुआ हमला?

राकेश महला वर्षों से भेड़-बकरी पालन कर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं। मंगलवार को हमेशा की तरह उन्होंने अपनी भेड़-बकरियों को चराने के बाद खेत में बने बाड़े में बांध दिया था। यह बाड़ा लगभग 110 भेड़ों की क्षमता वाला है।

बुधवार सुबह जब राकेश ने भेड़ों को देखा तो बाड़े में चारों तरफ मृत भेड़ें और उनके मेमने पड़े हुए थे। ग्रामीणों ने इस बारे में वन विभाग को सूचना दी।

मौके पर पहुंची वन विभाग और पशु चिकित्सा टीम

घटना की सूचना मिलते ही क्षेत्रीय वन अधिकारी रणवीर सिंह, पशु चिकित्सक गजराज सिंह तथा वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची। मौके से जानवर के पगमार्क एकत्र किए गए और मृत भेड़ों का पोस्टमार्टम किया गया।

जांच और आशंका

वन विभाग द्वारा प्रारंभिक जांच में यह आशंका जताई जा रही है कि हमला किसी जंगली शिकारी जानवर जैसे तेंदुए या लकड़बग्घा द्वारा किया गया हो सकता है। हालांकि पक्के सबूतों की प्रतीक्षा की जा रही है।

पशुपालकों में भय का माहौल

इस घटना के बाद पूरे गांव और आसपास के ग्रामीण पशुपालकों में भय और चिंता का माहौल है। लोगों की मांग है कि वन विभाग क्षेत्र में गश्त बढ़ाए और किसान भाइयों के जानवरों की सुरक्षा के लिए उचित कदम उठाए जाएं।

गुढ़ागौड़जी में हुई यह घटना केवल एक किसान की आर्थिक क्षति नहीं, बल्कि क्षेत्रीय सुरक्षा व्यवस्था पर भी सवाल खड़े करती है। सरकार और वन विभाग को इस ओर शीघ्र ध्यान देना चाहिए।